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________________ ( १४८ ) नेत्रो से दिखाई देता है वह सब परिवर्तनशील है।' 'अरे ।।1 'चोकिए नहीं प्रारणेश । देखिए, पहले आप बालक थे, फिर युवा हुए और अब ।' "हाँ । हा बोलो, अब मुझ मे क्या परिवर्तन हो गया है ?" 'स्वामिन् । देखिए ना पहले आप राजकुमार थे, फिर राजा बने, और महाराजा बने "तो यह परिवर्तन ही तो है।' 'श्रोह । तुम अत्यन्त समझदार नारीरत्न हो सुभद्रे। मै वह सब समझ गया हूँ जो तुम कहने वाली थी पर कह न सकी।' ___महारानी सुभद्रा इतना सुनकर अपने आप मे लजा गई औरभी विनम्र हो गई। 'एक निवेदन कर स्वामित् ।' महानी सुभद्रा ने पुन दृष्टि झुक्काए ही कहा। 'हा' हा । बोलो । 'स्वामिन् । आज का दिन बहुत ही महत्वशाली है कि हमे सोते से जगाया है। 'तुम्हारा मन्तव्य मैं समझा नहीं।' 'प्रभो । आज हमने ससार की वास्तविकता पर विचार किया है, आज हमारे हृदय मे सन्तोष का प्रादुर्भाव हुआ है, अाज हमे स्वय का भान हुआ है । अत .' 'कहती जाम्रो • रूको नहीं।' 'ग्रत प्राज जी खोलकर दान दीजिए, भावो को विशेष पवित्रता के रग मे रगने के लिए धर्मार्थ कार्य कीजिए ।' 'प्रारणेश्वरी । मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है कि तुमने मेरे ही मन की बात कह दी । सचमुच मै भी यही विचार रहा था।' 'सच ।।।" 'हा प्रिमे।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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