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________________ १२ राजकुमारी सुलोचना F 'घरी तुम ! ! T 'जी पिताजी " में. י ' 'कहा से आ रही हो बेटी ।' 'मैं मन्दिर से पूजा करके श्रही रही हूँ । लीजिएगा"" 'यह क्या है बेटी ? 'पिताजी यह पूजा का महत्त्व मे भरा फल 'प्राशिका' है । इसे नाप नेत्रो से लगाइये, मस्तक पर लगाइये ।' + 'ओह । ला वेटी ला ।' . पिता ने प्राशिका ली और एक सरसरी दृष्टि अपनी पुत्री पर डाली। पुत्री अपने आप मे सिमट गई और लजाकर नतमस्तक हो ग्रन्दर चली गई । पुत्री जब सामने से चली गई तो पिता गहन विचार में डूब गये । श्राज काफी समय बाद इतने निकट से अपनी पुत्री को देखा था। कभी भी ऐसा संयोग ही नही बैठा था कि कुछ समय तक पिता और पुत्री ग्रामने सामने बैठे घोर वाते करें । " इसे अव कुंवारी नही रहना चाहिये । यह मव विवाह योग्य हो गई है । पर पर इसके लिए इसके लायक 'दर' मिलेगा भी कहाँ । "मैंने अब तक इन और ध्यान ही नहीं दिया। कहा कहा मिलेगा इसके लायक वर रूप से हूँ, किसने पू भरा, कामदेव समान 'वर' क्या इस पृथ्वी पर मिल सकेगा ? *प्रोफ" " "
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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