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________________ (१४७ ) पन्द्रहवा स्वप्न' टूटे हुए और पुराने पत्ते' देखने का फल यह है कि महाऔषवियो का रस व उपयोग नष्ट हो जाएगा । सोलहवे स्वप्न में जो त्ने देखा है कि 'चन्द्रमा के चारो ओर घेरा (परिमण्डल) है उसका उसका फल यह जान कि मुनियो को पचम काल मे अवधिज्ञान योर मन पर्यय ज्ञान भी नहीं होगा। हेवत्म । इन सव स्वप्नो का फल लम्बे समय पश्चात अर्थात् पचम काल मे घटित होगा। इन हेतु तुझे इतना व्याकुल नहीं होना चाहिए । फिर भी व्याकुलता को मिटाने के लिए वर्म माधन तुझे करना चाहिए । भरत ने भगवान आदिनाथ से समाधान पाकर अपने पाप मे सावधान हुमा बारम्बार नमस्कर करता हुआ वापिस अयोध्या पाया। वापिस आकर भरत ने विशेष चिन्तन मनन किया। गम्भीर मुद्रा को देखकर सभी चकित थे। 'स्वामिन् । ग्राज आप कुछ गम्भीर मालूम पड़ते है ? मया में कारण जान सकती हू?" महारानी सुभद्रा ने विनम्रता से पूछा। सुनकर भरत कुछ विहसे, और सुभद्रा की ओर प्यार से निहार कर बोले-'प्रिये । यह जो वैभव, सम्पदा, एश्व तुम देख रही होना "यह सब नश्वर है, विनाशवान है, मात्र पुष्य का फल है।' 'यह तो कोई नई बात नही प्रभो।' । 'क्या । ! ! तुम्हे यह कोई नई बात नही लगी?' 'जी नही स्वाभिन्।' 'क्यो ।' 'क्योकि--मुझे इसका पूर्ण अनुभव पूर्वक ज्ञान है कि जो भी
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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