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________________ ( १२२ ) के ठीक सामने रत्न, मणि रचित मच था—जिस पर झालरे, मोती, और मणियो की लडिया चमक रही थी। विशाल मण्डप मे सुगन्धि प्रसारक व्यवस्था थी। जन समूह के बैठने की सुन्दर व्यवस्था थी। __ मत्र के पास ही एक ऊँचे आसन पर सामने निर्णायको के लिए बैठने की व्यवस्था की । मण्डप मे दर्शक गणो की अपार भीड के लिए बैठने की भव्य व्यवस्था की गई थी। ___ समय का बिगुल बजते ही मच पर भरत और वाहुबली पहुचे । पूर्ण साज शृ गारो से सजे हुए दोनो महेन्द्र लग रहे थे। दोनों के चहरो पर प्रसन्नता की प्रवीर विखर रही थी। मच पर आते ही जन समूह ने जय-जय की ध्वनि गु जायमान करदी। सवकी दृष्टि मच पर लगी हुई थी। पीछे वाला अपने से आगे के ऊँचे सिर को थोडा नीचे करने को बाध्य कर रहा था। युद्ध प्रारम्भ का विगुल बजा और दोनो प्रतिद्वन्दी नामने सामने खड़े हो गए । कमाल का दृश्य था यह । दोनो की दृष्टियां एक दूसरे की दृष्टि पर पाटिको । निर्णायको ने प्रत्येक क्षण का ध्यान रखा कि देखें किसकी पलके पहले टिमटिमा जाती हैं । क्यो कि दृष्टि मिलाते रहने पर जिसको पलके पहले टिमटिमा गई या भापक गई तो उसी को हार निश्चित थी। क्षण बीते, पल पीते और समय बीता ! दोनो एक दूसरे को हराने को उग्रत थे । भरत यहा भी व्याकुलता का अनुभव करने लगा। उसकी गरदन दुखने लगो। नेत्र भारी-भारी होने लगे। इसका पारग . -सका कारण पर पा कि भरत कद में छोटा और बाहुबली पसा होने में नेत्र मिलाने के लिए भरत को प्रासे के घी करनी पी नरनि वायली को आगे नीचे की ओर थी।
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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