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________________ ( १२३ ) कब तक प्रांखे ऊपर उठी रहती। इस युद्ध मे भी भरत मात खाता दिखाई देने लगा। देखते ही देखते भरत के नेत्र डव डवा प्राए और पलके टिम टिमा उठी । भरत की हार, और बाहुवली . की विजय घोषित हुई। ___ गगन मण्डल पुन 'जय वाहुबली' की नाद से गज उठा। सब ओर भरत की निन्दा और बाहुवली की सराहना हो उठी। कोई कोई कहता ". • अजी । इस हार से क्या होता है। मल्ल युद्ध मे देखना-बाहुबली चित लेटता दिखाई देगा। भरत भी आखिर फौलाद का बना हुआ है। कोई कहता " अरे रहने दो ! जिसने दो युद्धो मे पीठ दिखादी वह अब तीसरे मे क्या निहाल करेगा? उसे तो हार मान ही लेनी चाहिए। ___ कोई कहता “ सेना के बल पर ही दिग्विजय करने का सपना देता है भरत ने , आज मालूम हुमा है कि लडभिडना क्या होता है। 'मुण्डे मुण्डे मतिभिन्ने" की उक्ति के अनुसार विभिन्न तरह की बात हो रही थी। ____ अव मल्ल युद्ध की तयारियां हो रही थी। विशाल अखाडा तैयार किया गया। जिसमे दोनो वीर मल्लयुद्ध के वस्त्र धारण किए आ धमके। दोनो ही जैसे बब्बर शेर हो। मासल और गठीला शरीर देख देख कर नारियां स्वभावत मचल उठी । कायर थर थर कॉपने लगे ! वीर की वॉछे खिल उठी। दोनो का ही शरीर सुडोल, गीला और उभरा हुआ था। निर्णायक भी उस अखाड़े मे इतरा हुआ था। दोनो को तंमार देखकर प्रारम्भ का विगुल बज उठा। विगुल के बजते ही
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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