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________________ नियम हैं कि वे भगवान आदिनाथ के अतिरिक्त किसी के भी आगे मस्तक नहीं झुकायेंगे।" "यह उनका ग्रहकारा है।" "कुछ भी हो। किन्तु यह सच है।" "हमे इस सच को झूठ में बदलना होगा।" "मुझे तो विश्वास नहीं होता।" इतना सुनकर भरत तिलमिला उठे। भुजाये फ्डक उठी और भौहे तन उठी। कडक कर दोले "सेनापति II "जी महाराज !" "सेना को अाज्ञा दो कि पोदनपुर की ओर कूच करे।" "कुछ निवेदन प्रस्तुत करू' महाराज ।" "अव क्या कहना शेष रह गया ?" "आपके नाता बाहुवली जी बहुत ही समझदार है, विशेष विवेकी हैं। क्यो नहीं म अाक्रमण करने से पूर्व अपना विशेष दूत उनकी सेवा में भेज दे। "क्यो ? किसलिये" , दूत प्रापका सन्देश बाहुवली जी से कहेगा कि-'भरत महाराज ने दिग्विजय प्राप्त कर ली है। ऐसा कोई भी शानक शेष नहीं रहा है जिसने भरत महाराज को प्राधीनता स्वीकार को हो । प्रत आप भी चलकर भरत महराज की प्राधीनता स्वीकार करके उन्हें प्रणाम कर लीजिये।" "सन्मति तो उचित ही है।" 'तब कहिट नया नाना है " "दूत को तुरन्त हमारा यही सन्देश लेकर भनी पोदनपुर भेज दो। और यह भी कह दो कि दिलन्द नहीं करे।"
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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