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________________ • 'हा' हा / जरूर पूछो ' 'कहो जी, आप तो ज्योतिषी है। आप ही बताइये ना ज्या वात हुई ? • भई । मैं भी उलझन मे पड गया।' ' अरे 111 तो क्या "तो क्या?' इधर जन-समूह मे अनेक प्रकार की चर्चानो ने जन्म ले लिया था। औरते नाक से उगली लगा लगाकर, ढोडियो को छु-छू कर अनेक बातो को मुखरित कर रही थी । भरत की विशाल सेना खामोश हो गई (जैसे विजय नही हार लेकर भाई हो) । खडी को खडी रह गई । वातावरण मे चुलबुल मच गई । __ महारज भरत भी चिन्तित हो उठे। उन्होने सेनापति की ओर देखा । मन्त्रियो की ओर देखा और अनेक राजा महाराजाओ की ओर देखा किन्तु सभी निरुत्तर से थे। महाराज भरत ने तब अपने विशेषज्ञ को बुला भेजा, नीति और निमित्त विशेषज्ञ तुरन्त प्राया और नम्र हो खड़ा हो गया। महाराज भरत ने उससे पूछा "वताइये । आपकी नीति और निमित्त ज्ञान इसके विषय मे क्या कहता है ?" ___"महाराज | जान पड़ता है कि छहसण्ड भू-मण्डल पर अभी कोई ऐसा शेप है जिस पर अापने विजय प्राप्त नही की है ?" "क्या मतलब ???" भरत चौफ उठा । "हा महाराज | जहा ता मेरा अनुमान है वह यह है कि पोदनपुर के मामक प्रापफे माना पाहनी ने प्रापकी पालिता स्पोमानी।" "यर न हो माता है?" "मुझे मार मागल चे महान् बनमाली । उगा
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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