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________________ { ११० ) "जैसी आज्ञा स्वामिन् ।" सेनापति ने एक योग्य अनुभवी दूत को पोदनपुर, महाराज भरत का सन्देश लेकर भेज दिया । महाराज भरत ने अब अयोध्या के बाहर ही एक मच और विशाल मण्डप मे विश्राम किया । सेना भी यही विश्राम करने लगी । अयोध्या की असख्य जनता का उत्साह फोका हो गया। चक्ररत्न द्वार के बाहर अडिग हुमा जहाँ का तहाँ अधर हो रहा था। - X X X X दूत महाराज भरत का सन्देश लेकर बाहुबली की सेवा में पहुंचा । बाहुबली अपने राज्य दरबार मे उस समय विराजे हुये थे। द्वार पर खडे दरवान ने बाहुबली से निवेदन किया कि"महाराज भरत के राजदूत आपके दर्शनो के इच्छुक हैं।" और तभी बाहुबली ने सादर उपस्थित करने की आज्ञा प्रदान कर दी थी। दूत दृष्टि नीची किये हुये नम्रता से भीगा हुआ खडा था। बाहुबली ने अपनी मीठी मधुर-बाणी से पूछा"कहिये दूत महोदय । सव कुशल तो है ?" जैसे सितार का तार बज उठा हो। एक मधुर स्वर बज उठा हो । दूत तो पानी-पानी हो गया। कुछ भी तो न वोला गया उससे बाहुबली पूछे जा रहे थे___ "भरत जी दिग्विजय करके सकुशल तो आ गये हैं ना ?... अब तो कोई भी भू-भाग ऐमा नहीं रहा होगा जिस पर उनका अधिकार नहीं हुया हो ? " हमारे लिये क्या मगल सन्देश भेजा है उन्होंने ?. पपा कोई महान् उत्सव मनाने का प्रायोजन है।" . "महाराज " दूत प्रब दृटता सराकर बोला
SR No.010160
Book TitleBhagavana Adinath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasant Jain Shastri
PublisherAnil Pocket Books
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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