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________________ हमें कही से कुछ भी वृत्तान्त प्राप्त नही होता है । न उनके वंश का परिचय, न पिता माताके नामका कही पर उल्लेख है । इसी के कारण उनका काल-निर्णय एक समस्या बन गया है। शिलालिपियो में ऐसी कोई दिनाक नहीं है, कि जिससे कालनिर्णय किया जासके । अतः हमें हठात् शिलालिपियो मे वर्णित कथाम्रो की ऊहापोहात्मक चर्चा करनी पडती है । पुराने ऐतिहासिको में स्वर्गीय प० भगवानलाल इन्द्रजीने पहले स्थिर किया था कि खारवेल के शासन कालके तेरहवे वर्ष हाथीगुफा के शिलालेख खोदित हुए थे। हाथी गुफा के लेख मॅ मौर्य काल का उल्लेख है । इस मत के आधार से वह खारवेल शासन के इन १३ वर्षों को वे मौर्यो के १६५ वर्षसे मानते थे । अर्थात् वह काल ईसा पू० ६० अवश्य होगा, क्योकि स्व० इन्द्र जी ई० पूर्व २५५ को प्रशोक के कलिंग विषय का समय मानकर उसे मौर्य काल की पहली वर्ष मानते थे । गणनाके फल स्वरूप खारवेलका सिंहासनारोहण का समय ई० पू०१०३ ( ई० पू० २५५ - १६५+१३ ई० पू० १०३ ) होता है, एसा उनका विश्वास था । ४ परन्तु डॉ० फ्लिट्ने प्रोफेसर लुजारस के मतका मनुसन्धान कर मौर्य काल के बारे मे विरुद्ध मत स्थापन किया है। उनका कहना है कि हाथीगुफा के शिलालेखो मे प्रथवा भारत के इतिहासमे मौर्य कालके बारेम कोई सत्य बात ज्ञात नही होती। शिलालेखकी छटवी पक्तिमे लिखित "तिवस सत्" को वे १०३ वर्ष मानकर एव शेष नन्दराजा के राजत्व काल 1 Proceedings of the International Congress of Orientalists, Leyden. 1889 2 Ibid 3 J. R. A. S.,1910, 242, ff. 824 ff. 4 Ep. Indica, vol. X. App. 1980-1, No. 1845 -1 -
SR No.010143
Book TitleUdisa me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshminarayan Shah
PublisherAkhil Vishwa Jain Mission
Publication Year1959
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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