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________________ स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा ग्रंथ के एक अंग के रूप में या फिर वास्तु-विद्या और मूर्ति-कला पर संयुक्त ग्रंथ के रूप में लगभग तेरहवीं शती से इसे लिखित रूप मिला। संभवतः इसका एक कारण यह रहा कि ये विषय एक-दूसरे से इतने अधिक जुड़े हुए हैं कि उन पर स्वतंत्र ग्रंथ लिखना उस समय व्यावहारिक प्रतीत नहीं हुआ होगा । ऐसी रचनाओं मे पाँचवीं शती के आचार्य पादलिप्त सूरि की 'निर्वाणकलिका', दसवीं शती के उत्तरार्द्ध के आचार्य वीरनन्दी द्वितीय की 'शिल्पिसंहिता' और आचार्य इंद्रनन्दि का प्रतिष्ठा-पाठ', लगभग ग्यारहवीं शती के आचार्य ब्रह्मदेव का प्रतिष्ठा-तिलक': पंडित आशाधर का प्रतिष्ठासारोद्धार (1228 ई.) और पूजा-पाठ, उनके समकालीन पंडित ठक्कुर फेरु का 'वत्थु सार-पयरण' (1315 ई.), प्रसिद्ध नाटककार हस्तिमल्ल का 'प्रतिष्ठापाठ'; बारहवीं तेरहवीं शती के पण्डित नेमिचंद्रदेव का प्रतिष्ठातिलक', तेरहवीं शती के नेमिचंद्र सूरि (उपर्युक्त पण्डित जी ?) का प्रवचनसारोद्धार और उस पर उसी समय के सिद्धसेन सूरि (देवभद्र के शिष्य) की 'तत्त्वज्ञान - विकासिनी नामक टीका, उपाध्याय सकलचन्द्र का प्रतिष्ठाकल्प', आचार्य उग्रादित्य का कल्याण-कारक' आ० जयसेन द्वारा लिखित 'प्रतिष्ठापाठ' (वसुबिन्दु) एव वसुनन्दि आचार्य का 'प्रतिष्ठापाठ' आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। आ० जयसेनकृत 'प्रतिष्ठापाठ में मंदिर के निर्माण के सबंध मे विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है। पंडित आशाधर का 'प्रतिष्ठा-सारोद्धार' भारतीय साहित्य की अधिकांश विधाओं में पंडित आशाधर का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 1228 ई. मे लिखे गए उनके 'प्रतिष्ठा-सारोद्धार' मे मूर्ति-प्रतिष्ठा के माध्यम से वास्तु-विद्या का भी विधान है। 'जिन-यज्ञकल्प' के दूसरे नाम से भी प्रसिद्ध प्रतिष्ठा-सारोद्धार' प्रौढ प्राञ्जल संस्कृत में 971 श्लोकों के छह अध्यायों में विभक्त है: 1. सूत्र - स्थापन, 2. तीर्थ-जल का लाया जाना आदि, 3. याग-मंडल की पूजा, 4. जिन-प्रतिष्ठा, 5. अभिषेक आदि एवं 6. सिद्ध आदि की प्रतिष्ठा । अंत में ग्रंथकार की विस्तृत प्रशस्ति है। जिनवाणी के अनन्य उपासक पंडित आशाधर ने इस ग्रंथ में शुद्ध आम्नाय के अनुसार गृहस्थाचार्य, प्रतिष्ठाचार्य आदि को महत्त्व देते हुए मंदिरों के जीर्णोद्धार का विधान भी किया है। (जैन वास्तु-विद्या 12
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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