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________________ करणानुयोग का प्राचीन, किंतु अनुपलब्ध ग्रंथ है 'लोयविभाग', जिसका संस्कृत रूपांतर लोक-विभाग के ही नाम से मुनि सिंह सूरि (लगभग 11वीं शती) ने किया था। उन्होंने लिखा है कि मूल 'लोकविभाग' की रचना पल्लववशी कांची-नरेश सिहवर्मा के शासन-काल में शक संवत् 380 (302 ई.) मे मुनि सर्वनन्दी ने पाटलिक नामक ग्राम में की थी; परंतु यह ग्रंथ इससे भी पूर्व रहा प्रतीत होता है, क्योंकि 'लोयविभाग' का उल्लेख 'तिलोयपण्णत्ती' (176 ई.) में कई बार हुआ है। नियमसार की सत्रहवीं गाथा में सन्दर्भित लोय-विभाग' यही ग्रथ माना जाए, तो उसका रचनाकाल आचार्य कुन्दकुन्द (52 ई.पू. से 48 ई. तक) से पूर्व मानना होगा। एक और अनुपलब्ध ग्रंथ है ज्योतिष्करण्डक', जो कि सूर्य-प्रज्ञप्ति' नामक प्राचीन ग्रंथ पर आधारित है और जिस पर आचार्य पादलिप्त सूरि (5वीं शती) की प्रकरण टीका तथा आचार्य मलयगिरि की टीका उपलब्ध है। उपलब्ध ग्रथों में सर्वाधिक विस्तृत और सूचनाप्रधान ग्रंथ है आचार्य यतिवृषभ का तिलोयपण्णत्ती', जिसका अनुसरण अनेक आचार्यों ने किया है। उसमें अनेक नगरियो के विस्तृत विवरण हैं। आवासगृह, जलाशय, बाजार, परकोटा, प्रवेशद्वार, राजभवन, गुफा, स्तूप, मंदिर, मानस्तम्भ, मेरु आदि की लंबाई-चौड़ाई, ऊँचाई-गहराई, नाप-जोख आदि तक बताए गए हैं। तीर्थकर के समवसरण का वर्णन तो और भी विस्तार से है। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धातचक्रवर्ती का 'त्रिलोकसार' (11वीं शती), आचार्य पदमनन्दि का 'जंबुद्दीवपण्णत्ती' आदि भी उल्लेखनीय है। _इनके अतिरिक्त भी कुछ उल्लेखनीय ग्रंथ है: औपपातिकसूत्र, जीवाजीवाभिगम, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चंद्रप्रज्ञप्ति, जिनभद्र गणी का क्षेत्रसमास' और 'सग्रहणी', बृहत्-क्षेत्रसमास (त्रैलोक्य-दीपिका), चंद्र सूरि (12वीं शती) द्वारा संकलित बृहत्-संग्रहणी'. प्रद्युम्न सूरि (13वीं शती) का विचारसार-प्रकरण', रत्न-शेखर सूरि (14वीं शती) का लघुक्षेत्रसमास', सोमतिलक सूरि (14वीं शती) का 'बृहत्-क्षेत्रसमास', आदि । प्रतिष्ठा-पार्टी में वास्तु-विद्या जिनवाणी की भाँति वास्तु-विद्या भी आरंभ में गुरु-शिष्य परपरा से मौखिकरूप में प्रचलित रही। वास्तु-विद्या का ज्ञाता और वास्तु-निर्माण में कुशल सूत्रधार यह विद्या विरासत में लेता और विरासत में देता रहा। जन पात-पिया 11
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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