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________________ FFERINEmopmmmmmmmmumore MA M . : एक सखि सुमति को लेकर, नायक बैतम के पास मिलाने के लिए गई। पहले दूतियाँ ऐसा किया करती थीं । वहाँ कह सखी अपनी बाबासमति की प्रशंसा करते हुए बेतन से कहती है, हे लालन ! मैं अमोलक बाल लाई है। तुम देखो तो वह कैसी अनुपम सुन्दरी है। ऐसी नारी तो संसार में दूसरी नहीं है। और हे चेतन ! इसकी प्रीति भी तुमसे ही सनी हुई है । तुम्हारी और इस राधे की एक दूसरे पर अनन्त रीझ है । उसका वर्णन करने में मैं पूर्ण असमर्थ हूँ।' प्राध्यास्मिक विवाह इसी प्रेम के प्रसंग में आध्यात्मिक विवाहों को लिया जा सकता है। ये 'विवाहला', 'विवाह', 'विवाहलउ', और 'विवाहली आदि के नाम से अभिहित हुए हैं । इनको दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-एक तो वह जब दीक्षा ग्रहण के समय प्राचार्य का दीक्षाकुमारी अथवा संयमश्री के साथ विवाह सम्पन्न होता है, और दूसरा वह जब प्रात्मा रूपी नायक के साथ उसी के किसी गुण रूपी कुमारी की गांठे जुड़ती हैं। इनमें प्रथम प्रकार के विवाहों का वर्णन करने वाले कई रास 'ऐतिहासिक काव्य संग्रह' में संकलित हैं । दूसरे प्रकार के विवाहों में सबसे प्राचीन 'जिनप्रभसूरि' का 'अंतरंग विवाह' प्रकाशित हो चुका है। उपर्युक्त सुमति और चेतन दूसरे प्रकार के पति और पत्नी हैं । इसी के अन्तर्गत वह दृश्य भी आता है, जबकि आत्मा रूपी नायक 'शिवरमरणो' के साथ विवाह करने जाता है । अजयराज पाटणी के 'शिवरमणी विवाह' का उल्लेख हो चुका है। वह १७ पद्यों का एक सुन्दर रूपक काव्य है। उन्होंने 'जिन जी की रसोई में तो विवाहोपरांत सुस्वादु भोजन और वन-विहार का भी उल्लेख किया है ।। बनारसीदास ने तीर्थंकर शांतिनाथ का शिवरमणी से विवाह दिखाया है। शांतिनाथ विवाह मंडप में आने वाले हैं । होने वाली बधू की उत्सुकता १. लाई हों लालन बाल अमोलंक, देखहु तो तुम कैसी बनी है। ऐसी कहुँ तिहुँ लोक में सुन्दर, और न नारि अनेक धनी है। याहि तें तोहि कहूँ नित चेतन, याहू की प्रीति जु तो सौ सनी है। तेरी और राधे की रीझि अनंत जु, मो पै कहुँ यह जात गनी है ।। ब्रह्मविलास, शत प्रष्टोत्तरी, २८ को पद्य, पृ. १४ । २. देखिये 'हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि', भारतीय शानपीठ काशी, बठा अध्याय, पृष्ठ ६५६ । MPIYATARAN PRINDE යශශණයාරශීගිරිය
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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