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________________ crete नहीं दबती । वह अभी से उनको अपना पति मान बैठी है । वह अपनी संखी से कहती है, "हे सखी ! आज का दिन अत्यधिक मनोहर है, किन्तु मेरा मन भाया अभी तक नहीं भाया । वह मेरा पति सुख-कन्द है औौर चन्द्र के समान देह को धारण करने वाला है। तभी तो मेरा मन - उदधि प्रानन्द से प्रान्दोलित हो उठा है और इसी कारण मेरे नेत्र-चकोर सुख का अनुभव कर रहे हैं । उसकी सुहावनी ज्योति की कीर्ति संसार में फैली हुई है। उनकी वारगी से प्रमृत भरता है । मेरा सौभाग्य है जो मुझे ऐसे पति प्राप्त हुए ।" " तीर्थंकर श्रथवा श्राचार्यों के संयम श्री के साथ विवाह होने के वर्णन तो बहुत अधिक हैं । उनमें से ' जिनेश्वर सूरि और जिनोदय सूरि विवाहला' एक सुन्दर काव्य है । इसमें इन सूरियों का संयमश्री के साथ विवाह होने का वर्णन है । इसकी रचना वि० सं० १३३१ में हुई थी । हिन्दी के कवि कुमुदचन्द्र का 'ऋषभनाथ का प्रादीश्वर विवाहला' भी बहुत ही प्रसिद्ध है । विवाह के समय भगवान् ने जिस चुनड़ी को प्रोढ़ा था, वैसी चूनड़ी छपाने के लिए न जाने कितनी पत्नियाँ अपने पतियों से प्रार्थना करती रही हैं । १६ वीं शती के विनयचन्द्र की 'चूनड़ी' हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध रचना है । साधुकीर्ति की चूनड़ी में तो संगीता त्मक प्रवाह भी है। तीर्थंकर नेमीश्वर और राजुल का प्रेम नेमीश्वर और राजुल के कथानक को लेकर जैन हिन्दी के भक्त कवि दाम्पत्य भाव प्रकट करते रहे हैं। राजशेखर सूरि ने विवाह के लिए राजुल को ऐसा सजाया है कि उसमें मृदुल काव्यत्व ही साक्षात् हो उठा है। किन्तु वह वैसी ही उपास्य बुद्धि से संचालित है, जैसे राधासुधानिधि में राधा का सौदर्य । राजुल की शील-सनी शोभा में कुछ ऐसी बात है कि उससे पवित्रता को प्रेरणा मिलती है, वासना को नहीं । विवाह मंडप में विराजी वधू जिसके आने की प्रतीक्षा कर १. सहि एरी ! दिन आज सुहाया मुझ माया आया नही घरे ! सहि एरी ! मन उदधि प्रनंदा सुख-कन्दा चन्दा देह धरे । चन्द जिवां मेरा बल्लभ सोहे, नंन चकोरहि सुक्ख करे । जग ज्योति सुहाई कीरति छाई, बहु दुख तिमिर वितान हरे । सहु काल विनानी अमृतवानी, अरु मृग का लांछन कहिये । श्री शांति जिनेश नरोत्तम को प्रभु, भाज मिला मेरी सहिये । शांति जिन स्तुति, पद्य १, पृ० १५६ । बनारसी विलास, श्री 55555555555555555
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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