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________________ हो जाती । कबीर के ब्रह्म में रमणीयता है और सरसता भी । इसमें 'पीउ' का सौंदर्य है, इसलिए कबीर की आत्मा ने स्वयं 'बहुरिया' बनने में चरम आनन्द का अनुभव किया है । वह 'पिउ' जब उसके घर पाया, तब उसके घर का आकाश मंगल-गीतों से भर गया और चारों ओर प्रकाश छिटक उठा। 3 जायसी ने ब्रह्म को 'पीउ' के नहीं, अपितु 'प्रियतम' के रूप में देखा । उसमें कबीर के ब्रह्म से मादकता अधिक है और जायसी के प्रियतम में स्वतन्त्रता तथा सौंन्दर्य । कबीर के लाल को देखने वाली ही लाल हो गई है, किन्तु जायसी के प्रियतम को देखने वाली स्वयं लाल होती है और उसे समूचा विश्व भी लाल दिखाई देता है । 'नयन जो देखा कंवल भा, निरमल नीर सरीर'४ में यही बात है । जैन कवि द्यानतराय ने भी ब्रह्म के दर्शन से चारों ओर फैला बसंत देखा है। 'तुम ज्ञान विभव फूली बसंत, यह मन मधुकर सुख सों रमंत'' इसी का निदर्शन है। कवि बनारसीदास ने भी, "विषम विरप पूरो भयो हो, आयो सहज बसंत" के द्वारा इसी भाव को स्पष्ट किया है । कबीर में व्यष्टिमूलकता और जायसी में समष्टिगतता अधिक है, किन्तु जैन कवियो में दोनों ही समान रूप से प्रतिष्ठित है। हिन्दी के सत-काव्य का अधिकाश भाग बाह्य आडम्बरो के विरोध में केन्द्रित है। मध्ययुग के जैनों में भी बाह्य कर्म-कलाप इतने अधिक बढ़ गये थे कि उन्ही को जैन धर्म की सज्ञा दे दी गई, हालाँकि महावीर की क्रांति उनके २. 'हरि मेरा पीउ मै हरि की बहुरिया' । कबीरदास. मबद, २१ वा पद्य, मनमुधासार, वियोगी हरि-सम्पादित, दिल्ली, पृ० ६६ । ३ . दुलिहिनी गावहु मगलचार हम घर आये हो गजा राम भरतार । मन्दिर माहि भया उजियारा ले सूती अपना पीव प्यारा । --कबीर ग्रन्थावली, चतुर्थ मस्करण, काशी, पृ० ८७ । ४ . जायमी-ग्रन्थावली, द्वितीय सस्करण, काशी, मानसरोवर खड, ८वी चौपाई का दोहा, पृ० २५। ५ . द्यानतराय, द्यानतपद --संग्रह, जिनवारणी-प्रचारक कार्यालय, कलकत्ता, ५८ वां पद, पृ. २४ । ६ . बनारसीदास, अध्यात्म काग, बनारसी बिलास, जयपूर, पृ० १५४ । SATTRAPACE
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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