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________________ REWA कुलम EE R A.LAJI सिद्ध के समान है विराजमान चिदानन्द । ताही को निहार निज रूप मान लीजिये ।।' कवि बनारसीदास ने लिखा हैपरम पुरुष परमेसर परम ज्योति, परब्रह्म पूरण परम परधान है । सरब दरसि, सरबस सिद्ध स्वामी शिव, धनी नाथ ईश जगदीश भगवान् है ।।२ हिन्दी-कवियों का यह कथन विक्रम की सातवी शताब्दी में होने वाले प्राचार्य योगीन्दु के परमात्म-प्रकाश के आधार पर प्रतिष्ठित है। उन्होंने भी सिद्ध को ब्रह्म संज्ञा से अभिहित किया है। उनकी दृष्टि में शुद्ध प्रात्मा ही ब्रह्म है, और उसी को ब्रह्म कहते हैं । कबीर ने जिस आत्मा का निरूपण किया है, वह विश्वव्यापी ब्रह्म का एक अंश-भर है। किन्तु जैन कवियों को प्रात्मा कर्ममल को धोकर स्वयं ब्रह्म बन जाती है, वह किसी अन्य का अंश नहीं है । इस भाँति कबीर का ब्रह्म एक है, और जैनों के अनेक । किन्तु स्वरूपगत समानता होने से उनको भी एक ही कहा जा सकता है। कबीर ने जिस ब्रह्म की उपासना की है, उस पर केवल उपनिषदों के ब्रह्म का ही नहीं, अपितु सिद्धों, योगियों, सहजवादियों और इस्लामिक एकेश्वरवादियों का भी प्रभाव पड़ा है। आचार्य क्षितिमोहन सेन की दृष्टि में कबीरदास ने अपनी आध्यात्मिक क्षुधा के उपशम के लिए ही ऐसा किया। जैनों का ब्रह्म तो आध्यात्मिकता का माक्षात् प्रतीक है । उनका ब्रह्म अपनी पूर्व परम्परा से अनुप्राणित है । उस पर किसी का प्रभाव नही है। कबीर के ब्रह्म पर प्रभाव किसी का भी हो, किन्तु उसमें दार्शनिकों को शुष्कता नही है । यदि ऐसा होता तो लाल को लालो देखनेवाली भी लाल कैसे १. भैया भगवतीदास, सिद्धचतुर्दशी, पद्य २, ३, ब्रह्मविलास, जैनग्रन्थ रत्नाकर कार्या लय, बम्बई, द्वितीयावृत्ति, सन् १९२६ ई०, पृ० १४१ । २. कवि बनारसीदास, नाममाला, देखिए 'ईश' के पर्यायवाची नाम । ३. योगीन्दु ने परमात्मप्रकाश में अनेक स्थानों पर शुद्ध प्रात्मा को 'ब्रह्म' सज्ञा से अभिहित किया है । एतदर्थ १-२६ दोहा देखिए । ४. प्राचार्य क्षितिमोहन सेन, कबीर का योग, कल्याण, योगांक, पृ० २६६ । 5555555555555555SS M
SR No.010115
Book TitleJain Shodh aur Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1970
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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