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________________ -७६] चिकहनसोगेके लेख [ आर्यनन्दि आचार्यका यह नामोल्लेख है। लिपि ९वीं-१०वीं सदीकी है। [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० ३९६ पृ० ६२ ] ७४-७५ चिक्कहनसोगे ( मैसूर ) १०वीं सदी-प्रारम्म, कमल [ इस निसिधिलेखमें मूलसंघ-देसिगण-पनसोगे शाखाके श्रीधरदेवके शिष्य नेमिचन्द्रके समाधिमरणका उल्लेख है। यह लेख १०वीं सदीके प्रारम्भका है तथा इस समय रामेश्वर मन्दिरमे लगा है। यहींके एक अन्य निसिधिलेखमे नागकुमारकी पत्नी जक्कियब्बेके समाधिमरणका उल्लेख है। समय १०वीं सदीके प्रारम्भका है।। [ए. रि० मै० १९१४ पृ० ३८ ] चिक्कहनसोगे ( मैसूर ) १०वीं सदी-प्रारम्भ, कन्नड १ एरेय समु २ द्रवेष्टितधरात३ लमं प्रतिपालिसु ४ त्तमित्तेरेग म. ५ हारिमण्डलिक ६ रि बेसकेरय विला७ सयेलगेयं मे ८ रेवकरूरनेन्दे९ निसल आलिपोरी १० स्तितसन्ध्यरिन्दु वन्दे११ रग समन्तु क १२ नेलेयदेवर १३ पादपयोरुह १४ गलोल । स्थावरजं१५ गमतीर्थ भावि १६ सि पेलदागलोरदे गो१७ म्मटदेवर स्थावर- १८ तीर्थ कल्नेलेदेव१९ र भूवलयदोलगे २० जंगमतीर्थ ॥
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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