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________________ तिरुनिडंकोण्डके लेख [ यह लेख पीतलको चौबीसतीर्थकरमूर्तिके पादपीठपर है। लिपि ९वीं सदीकी है। यह मूर्ति जिनवल्लभको स्वजन ( पत्नी ) भागियबेद्वारा स्थापित की गयी थी। लिपिसे स्पष्ट होता है कि यह मूर्ति कर्नाटकमें निर्मित हुई थी।] [ए० रि० मै० १९४१ पृ० २५० ] ६६-६७ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास ) ९वीं सदी, तमिल [ इस लेखमें कहा है कि तिरुनरुंगोण्डैके किलप्पल्लि ( जैन मन्दिर ) का चतुर्मुगत्तिरुक्कोयिल् (चतुर्मुख वसति ) तथा पूर्वका सभामण्डप तलक्कूडि निवासी विशयनल्लूलान् कुमरन् देवन्ने बनवाया था। लेखकी लिपि ९वीं सदीकी है। यहींके अन्य दो भागोंमें इसी समयकी लिपिमें वाणकोवरैयर् तथा आरुलगपेरुमान्का उल्लेख है । ] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३०६-७ पृ० ६६ ] ६८-६९ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास) ९वों सदी, तमिल [ इस लेखमे नारियप्पाडि निवासी शिगणार् पेरियवडुगणार्-द्वारा दो जैन पल्लियों ( मन्दिरों ) के लिए १० पोण ( मुद्राएँ ) दान दिये जानेका निर्देश है। यहींके एक अन्य लेखमे नारियप्पाडि निवासी पेरियनक्कनार्के पुत्र ( नाम लुप्त ) द्वारा भी कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है लिपि ९वी सदीकी है। ] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ३०८-९ पृ० ६६ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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