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________________ ४० जैनशिलालेख-संग्रह [६३ ३ अरमण्डमेगालुमनोकेमोगेयु ओडिपा४ डियुं गोरियन्दम्मगलरुगण्डुग बेदेनेल मणकोहर ५ इदानलित्तु केडिसिदोनोक्कल कंडुग पंचम६ हापातकनक्कवन् मक्कलु साग७ वसदियान्कयदोन् नारायण पे८ रुन्तसन् [ यह लेख ९वीं सदीकी लिपिमे है । नरसीगेरे अप्पोर् दुग्गमार ( जो गंगवंशका राजपुत्र था) द्वारा एक जिनमन्दिर ( कोपिलवसदि) को ६ खण्डुग भूमि दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है। इतनी ही भूमि अरमण्डमेगलु, अगोकेमोगे, ओड्डिपाडि इन ग्रामोंके निवासियों द्वारा तथा गोयिन्दम्म-द्वारा दान दो गयी थी। श्रेष्ठ शिल्पकार नारायणने इस बसदिका निर्माणकार्य किया था।] [ए० रि० मै० १९३२ पृ० २४० ] मोटे बेन्नर ( धारवाड, मैसूर ) ९वी सदी, कार [ यह लेख ९ वीं सदीको लिपिमें है। इसमे किसी बसदिके लिए चन्द्रनन्दि भट्टारको भूमि दान दी जानेका उल्लेख है । इस लेखकी स्थापना इन्दर पिट्टम्मके सेनबोव कुण्डमय्य-द्वारा की गयी थी।] [रि० सा० ए० १९३३-३४ क्र० ई १११ पृ० १२९ ] ६५ कलकत्ता ( नाहर म्युजियम ) ९वीं सदी, कन्नड १ श्री जिनवल्लभन सज्जन २ मागियबेय माडिसिद ३ प्रतिमे
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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