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________________ २४ जैनशिलालेख संग्रह ४०-४३ सावानिकोट ( कुर्नूल, आन्ध्र ) कड, ७वीं - ८वीं सदी [ यहाँ एक खेतमे पाषाणोंपर निम्न नाम खुदे है - १ श्री कोपा (शि) की निसिधि २ संसारमीत ३ श्रीविमलचन्द्रन् ४ गणिगे महाव्रति इनकी लिपि ७वी-८वीं सदीकी है । ] [ " ४४ मावेर्ल ( कृष्णा, आन्ध्र ) तेलुगु, ८वीं सदी, पूर्वार्ध ४० [रि० स० ए० १९३७-३८ क्र० ३३०, ३३२, ३३७, ३३९ पृ० ४१-४२ ] [ यह लेख पूर्वीय चालुक्य राजा सकललोकाश्रय जयसिंहवल्लभ (द्वितीय) के राज्यवर्ष ८ मे लिखा गया था । दयावसन्त पृथिवीदेशरट्ट - गुडिके प्रपौत्र तथा धन्यवसन्त पृथिवीदेश रट्टगुडिके पुत्र कल्याणवसन्तुलुद्वारा अरहन्तभटारको कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमे उल्लेख है । इस दानकी रक्षा कोठूरुके रट्टगुडि वंशके शासक करेंगे ऐसा लेखमें कहा है । ] [रि० स० ए० १९४१-४२ क्र० १८ पृ० १३१ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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