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________________ -३९ ] १ स्वस्ति भ ३ रमभट्टारकस्य पा ५ हेश्वर पर ( मे ) इवर प ७ राजुल श्रन्दु पल्ले९ जेन्वानूरु राजमा (नं) - ११ पट्टु क्षेत्रंबु प (रि)१३ नंबुनाकु इच्चे १५ अडुगडु५७ पलंबगु १९ वानिकि एकलु २१ लच्चिन पाप नलजनम्पाडुका लेख ३६ नलजनम्पाडु ( आन्ध्र ) तेलुगु, ७वीं-८वीं सदी अगला भाग २३ लाल कोडुकु २५ ज्येस्य लिकि २ गवदर्हत ( प ) - ४ दानुध्यात परममा६ ल्लवादित्य श्रीबादि८ यरि कोडुकु बादि (रा) - १० बु मूनूरु वुट्ट आलं१२ सि पल्लेयारि (दा) - १४ दीनि रक्षिचिनवानि (कि) पिछला भाग १६ गइवमंधना १८ दीनि लच्चिन २० श्रीपर्वतं २२ बगु वाच्चो २४ पल्लवाचा २६ तम् (1) २३ [ इस लेख मे परमेश्वर पल्लवादित्य वादिराजुल नामक शासक द्वारा ३ पुट्टि जमीन किसी ग्राममुख्यको दिये जानेका उल्लेख है । वादिराजुलको अर्हतभट्टारक तथा महेश्वर दोनोंका भक्त कहा गया है । लेखकी लिपि ७वीं-८वी सदीकी है । ] [ ए० ई० २७ पृ० २०३]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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