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________________ २२ जैनशिलालेख संग्रह ३१ मुट्ट (मद्रास) वलुलिपि वीं सदी [३१ [ ( जैनमूर्तिके नीचे - ) यह मूर्ति वेण्बुनाडुके कुरण्डि अट्टउपवासि भटारके शिष्य गुणसेन देवके शिष्य कनकवीरपेरियडिगल्-द्वारा बनवायी गयी थी । ] [ रि० २० सा० ए० १९१० पृ० ५७ क्र० ६१ ] ३२ मुत्तुपट्टि (मद्रास) वट्टेललिपि, वीं सदी [ यह मूर्ति कुरण्डि अष्टोपवासिके शिष्य माघनन्दि- द्वारा बनवायी गयी थी । ] [रि० स० ए० १९१० पृ० ५७ क्र० ६२ ] ३३-३८ कोलक्कड ( मद्राम ) वट्टेललिपि ७वीं सदी , [ यहाँ जैन मूर्तियोंके समीप निम्न नाम खुदे है कनकनन्दि भटारके शिष्य अभिनन्दन भटारके शिष्य अरिमण्डल भटारके शिष्य अभिनन्दन भटार ( २ ) । अज्जन्दिकी माता गुणमतियार् । गुणसेन देवके शिष्य अनत्तवन् मासेनन्‌का भतीजा आच्चन् श्रीपालन् । गुणसेन देवके शिष्य कण्डन् पोपट्टन् । वेण्बुनाडुके तिरु कुरण्डिके सेवक कनकनन्दि । गुणसेनदेवके शिष्य अयंगाविदि, पल्लिके प्रमुख । ] [ रि० स० ए० १९१० १० ५७ क्र० ६३-६९ ] -
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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