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________________ जैन शिलालेख - संग्रह [ २१ २९ दशकण्डुकावापमात्रमारण्यक्षेत्रं च देवतायतनसत्रिकृष्टमेकं वेश्म च ३० एतत् सर्व सर्वपरिहारपरिगृहीतं पानीयपातपुरस्सरं दत्तं योस्य चतुर्थपत्र : पिछला भाग १२ ३१ कोमात् प्रमादाद् वापि हर्ता स पंचमहापातकसंयुक्तो भवति अपि चास्मिन्न ३२ थें मनुगीता ( नू ) इलोकानुदाहरन्ति ॥ स्वदत्त परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धराम् ३३- ३८ ( नित्य के शापात्मक श्लोक ) ३३ कुवलालत्वष्टकारस्य इदम्पटुवस्य पुत्रेण पेरेर नाम लिखितापट्टिका || शिवमस्तु [ यह ताम्रपत्र गंगवंशीय राजा माधव (द्वितीय) के पुत्र कोंगण्यधिराज ( अविनीत ) द्वारा राज्यवर्ष १२ के कार्तिक शु० १५ को दिया गया था । इसमे यावनिक संघ द्वारा अनुष्ठित एक अहं देवतायतन ( जिनमन्दिर ) के लिए पुल्लिऊर ग्रामकी कुछ भूमि और एक घर दान दिये जानेका उल्लेख है । यह मन्दिर पल्लव राजा सिंहविष्णुकी माता द्वारा निर्माण किया गया था । ताम्रपत्रको इदम्पटुव के पुत्र पेरेरने लिखा था । ] [ए०रि० मं० १९३८ पृ० ८० ] २१ कोरमंग (मैसूर) ६वीं सदी, संस्कृत प्रथम पत्र १ सूर्याशुद्युतिपरिषिक्त पंकजानां शोभां यद् वहति सदास्य पाद पद्मम् ।
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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