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________________ -२० ] होसकोटे ताम्रपत्र २५ दानाच्छु योनुपालनम् || विन्ध्याटवीध्वनम्मःसु शुष्ककोटरवासिनः । कृष्णाहिनो हि जायन्ते देवदार्य हरन्ति ये ।। [ यह ताम्रपत्र गुप्तवर्ष १५९ के माघ मासके ७ वें दिन लिखा गया था । ब्राह्मण नाथशर्मा तथा उसकी पत्नी रामीने पुण्ड्रवर्धनके राजकोष में तीन दीनार देकर डेढ़ कुल्यवाप जमीन प्राप्त की। इसमें ४ द्रोणवाप ज़मीन पृष्ठिमपोत्तक गाँवमे, ४ द्रो० गोषाटपुंजक गाँवमे, २३ द्रो० नित्वगोहाली और १३ द्रो० वटगोहाली में थी । काशीके पञ्चस्तूपनिकाय के निर्ग्रन्थ श्रमणोंके आचार्य गुहनन्दिके शिष्य - प्रशिष्योंका एक विहार वटगोहाली में था । वहाँ भगवान् अर्हतुकी पूजाके लिए गन्ध, धूप, फूल, दीप आदिकी व्यवस्थाके लिए यह जमीन नाथशर्मा तथा रामीने दान दी । इस ताम्रपत्र में परमभट्टारक पदसे किसी सम्राट्का उल्लेख किया है । ये सम्भवतः गुप्तवंशीय सम्राट् बुधगुप्त थे । पहाड़पुरके समीपका गोआलभिटा गाँव ही सम्भवतः प्राचीन वटगोहाली हैं । यहाँके एक बड़े मन्दिरके उत्खनन में कई जैन, बौद्ध तथा ब्राह्मण अवशेष मिले हैं । ] [ ए० इं० २० पृ० ५९ ] २० होसकोटे (मैसूर) ६वीं सदी पूर्वार्ध संस्कृत पहला पत्र : १ स्वस्ति जितं भगवता गतघनगगनाभेन पद्मनाभेन श्रीमज्जा वेयकुलामलग्यो - स्वभुजजवजयजनित सुजन जनपदस्य ३ विदारणरणोपलब्धव्रणविभूषणभूषितस्य काण्वायनसगोत्रस्य श्री ४ मत्कोंग णवमं धर्ममहाधिराजस्य पुत्रस्य पितुरम्वागतगुणयुक्तस्य २ मावमासन मास्करस्य दारुणारिगण
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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