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________________ ३८२ जैनशिलालेख संग्रह [६३५ निडुगल ( मैसूर) कन्नड [ इस लेखमें बेल्लुम्बट्टे के भव्यों-द्वारा-जो मूलसंघदेसिगणके नेमिचन्द्र भट्टारकके शिष्य थे-पार्श्वनाथ मूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है । ] [ए. रि० मै० १९१८ पृ० ४५ ] ६३५-६३६ नेल्लिकर ( द० कनडा, मैसूर) ___ संस्कृत-कन्नड [ यह लेख स्थानीय अनन्तनाथवसदिमे है। इसके मण्डपका निर्माण मंजण कोन्नभूप-द्वारा किया गया ऐसा कहा है । यहींके दूसरे लेखमे इस मन्दिरका निर्माण ललितकोति भट्टारकदेवके शिष्य कल्याणकोतिदेवकी सम्पत्तिसे देवचन्द्र-द्वारा किये जानेका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ५२०-५२१ पृ० ४८-४९ ] मुनुगोडु (गुण्टूर, आन्ध्र) तेलुगु [ इस लेख में बिल्लम नायक-द्वारा पृथियोतिलकबसदिके लिए कुछ भूमि दान दिये जानेका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९२९-३० ऋ० १९ पृ. ६ ] ६३८-६३६ लक्कुण्डि ( धारवाड, मैसूर ) कन्नड [ये दो लेख हैं। एकमें मूलसंघ-देवगणके शंखदेव-द्वारा एक जिन
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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