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________________ सम्मवालि मावि मेल ६३० तम्मदहलि ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) [ इस लेखमें मूलसंघ-देसियगणके चारुकोति भट्टारकके शिष्य चन्द्रांक भट्टारकके समाधिमरणका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९१६-१७ क्र० ४८ पृ०७४ ] ६३१ रामपुरम् ( अनन्तपुर, आन्ध्र) [ इस लेखमें मूलसंघ-देसियगणके देवचन्द्र देवके शिष्य बेट्टिसेट्टिके पुत्र कृष्णसेट्टिके समाधिमरणका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९१७-१८ क्र० ७१४ पृ०७४ ] रामतीर्थम् (विजगापटम आन्ध्र ) तेलुगु [ यह लेख एक भग्नजिनमूतिके पादपीठपर है। ओंगेरुमार्गस्थित चन्द (यो) ल निवासी प्र (मि) सेट्टि-द्वारा इस मूर्तिको स्थापना हुई थी।] [रि० सा• ए. १९१७-१८ क्र. ८३२ पृ. ८५] वेलर ( द० अर्काट, मद्रास) तमिल [ इस लेखमें जयसेन-द्वारा इस जिनमन्दिरके जीर्णोद्धारका उल्लेख है। लिपि उत्तरकालीन है। [रि० सा० ए. १९१८-१९ क्र० १२४ पृ०५९]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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