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________________ -६५० ] जबूर आदिके लेस ३८३ मूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है । दूसरेमें वसुषैकबान्धवजिनालयके त्रिभुवनतिलक शान्तिनाथदेवके लिए एक दानशालाके समर्पणका उल्लेख है । ] [ रि० स० ए० १९२६-२७ क्र० ई ३१, ३४ पृ० ३] ૬૦ जावूर ( धारवाड, मैसूर ) कसर [ इस लेखमें बीचिसेट्टि द्वारा सकलचन्द्र भट्टारकको जावूरु ग्रामके पुनः दानका उल्लेख हैं । नविलगुन्दमें जयकीर्तिदेव-द्वारा निर्मित ज्वालामालिनीबसदिके लिए मल्लिदेवने पहले यह गांव अर्पण किया था । ] [ रि० स० ए० १९२८-२९ क्र० ई २२८ १० ५५ ] ६४१ कोमर गोप ( धारवाड, मंसूर ) कड [ इस लेखमें त्रिभुनतिलक जिनालय में आहारदानादिके लिए बालचन्द्र सिद्धान्तदेवके शिष्य पेगडे वासियण्णकी पत्नी चामिकब्बे द्वारा सुवर्णदानका उल्लेख है । ] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ई २३० १० ५५ ] ६४२-६५० गुण्डकेजिंग ( बिजापूर मैसूर ) कण्ड [ यहाँ भग्न मूर्ति - पाषाणोंपर निम्न नाम खुदे हैं । (१) देशियगण - इंगलेश्वर (बलि) के चन्द्रकीर्तिदेव तथा जयकीतिदेव (२) अपराजिता देवी (३) वृषभयक्ष ( ४ ) पातालयक्ष (५) कुबेरयक्ष ( ६ ) महानसीयक्षी (७) अनन्तमती (८) चक्रेश्वरी ( ९ ) (शा) न्तनाथस्वामी ] [रि० सा० ए० १९२९-३० क्र० ई १६-१७ पु० ६६ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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