SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनशिलालेख संग्रह [१२० कम्मरचोडु ( बेल्लारी, मैसूर ) कन्नर [ इस लेखमें पद्मप्रभमलधारिदेवके प्रियशिष्य महावड्डव्यवहारि रायरसेट्टिकी पत्नी चन्दन्वे-द्वारा इस जिनमूर्तिके जीर्णोद्धारका वर्णन है । इस समय यह मूर्ति हिन्दू देवताके रूपमें पूजी जाती है । ] [रि० सा० ए० १९१५-१६ ऋ० ५६० पृ० ५५ ] ६२१-६२२ कोहशीवरम् ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) कन्नड [ यह लेख एक स्तम्भपर है। काणूर गणके पुष्पनन्दि मलघारिदेवके शिष्य दावणन्दि आचार्य-द्वारा एक बसदिके निर्माणका इसमे उल्लेख है। यहींके एक अन्य लेखमें काणूरगणके (?) आचार्यको शिष्या इरुंगोल राजाकी रानी आलपदेवी-द्वारा इस बसदिकी रक्षाका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९१६-१७ क्र० २०-२१ पृ० ७२ ] ६२३-६२६ अमरापुरम् ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) कन्नड [ यहाँके निसिधिलेखोंमे निम्न व्यक्तियोंके नाम है-(१) प्रभाचन्द्रदेवके शिष्य कोम्मसेट्टि (२) पोतोज तथा उसका पुत्र सयबि मारय (३) मलसंघ-देसियगणके बालेन्दु मलधारिदेवके शिष्य विरूपय तथा मारय (४) मूलसंघ-सेनगणके प्रसिद्ध वादि भावसेन विद्यचक्रवति (५) इंगलेश्वरके प्रभाचन्द्र भट्टारकके शिष्य बोम्मिसेट्टियर वाचय्य (६) बेरिसेट्टिके पुत्र सम्बिसेट्टि । यहाँके एक अन्य लेखमें इंगलेश्वरके त्रिभुवनकोति राउलके शिष्य देशियगणके बालेन्दु मलधारिदेव-द्वारा एक बसदिके निर्माणका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९१६-१७ ० ४१-४७ पृ० ७४ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy