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________________ कागिनोल्लि बादिके लेख ३०१ सेट्टिकी समाधिपर है। तिथि आंगिर संवत्सर, चत्र १, सोमवार यह है । तीसरी समाधि शान्तिदेव मुनिको है । तिथि प्रमादि संवत्सर, "मास व ६, शुक्रवार यह है । चौथी समाधि माघनन्दि मुनिपको है। तिथि श्रावण शु० ११, शुक्रवार, युव संवत्सर है।] [रि० सा० ए० १९३०-३१ ० ई १५.१८ पृ० ८५ ] कागिनोल्लि (धारवाह, मैसूर) [ यह लेख एक स्तम्भपर है। इसमें दानविनोद वैरिनारायण लेंकमसण आदित्यवर्माकी स्तुति की है तथा उसके द्वारा काणूरगण, मेषपाषाणगच्छकी बसदिमें एक स्तम्भको स्थापनाका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३३-३४ क० ई० २८ पृ० १२१] ६०४ माकनूर (धारवाड, मैसूर) [इस लेखमें खर संवत्सर, कार्तिक शु० (?), शुक्रबारके दिन मूल संघ-सूरस्थगणके नन्दिभट्टारकके शिष्य बोप्पगोडके समाधिमरणका उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३४-३५ क० ई ५० पृ० १५१ ] लवकुण्डि (धारवाड, मैसूर ) [ यह लेख एक भग्न जिनमूर्तिके पादपीठपर है। इसकी स्थापना विद्य नरेन्द्रसेनके शिष्य वैश्य जेमिसेट्टिकी कन्या राजब्वेने की थी।] [रि० सा० इ० १९३४-३५ क० ई ७५ पृ० १५४ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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