SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -YER] कारकस आदिके लेख ૩૦૧ [ यह लेख एक जिनमूर्तिके पादपीठपर है और इसका आधा भाग अस्पष्ट हो जानेसे अधूरा हुआ है। इसमें किसी गणके एक आचार्यका उल्लेख रहा है । ] [ ए०रि० मै० १९२९ पृ० १२६ ] ५८७ कारकल (मैसूर) संस्कृत [ यह लेख गोम्मट मूर्तिके सम्मुख ब्रह्मस्तम्भके समीप उत्कीर्ण पादुकाओंके पास है । लिपि आधुनिक है - ( मूल- ) श्रीगणघरपादम् । ] [रि० ३० ए० १९५३-५४ क्र० ३३८ पृ० ५२ ] ५८८ कोप्पल ( रायचूर, मैसूर ) कन्नड [ इस लेखमें चावय्यद्वारा जटासिंगनन्दि आचार्यको पादुकाओंकी स्थापनाका उल्लेख है । ] [रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० १६१ पृ० ४१ ] ५८६ बादंगट्टि ( धारवाड, मैसूर ) कन्नड [ यह लेख बोम्मिसेट्टिके समाधिमरणका स्मारक है । ] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० १६९ ० २२ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy