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________________ ३७० जैन शिलालेख संग्रह ५८१-५८४ हैदराबाद ( म्युजियम ) ( आन्ध्र ) संस्कृत-कराड [ ये चार मूर्तिलेख हैं जो घिसनेसे अस्पष्ट हुए हैं । एकमें मूलसंघके किसी व्यक्तिका उल्लेख है । दूसरेमें एक मूर्तिकी स्थापना फाल्गुन शु० १५, बुधवार, शर्वरी संवत्सर के दिन किये जानेका उल्लेख है । तीसरेमें पण्डित मल्लिसेनका उल्लेख है | चौथेमें नेमिचन्द्रदेवके शिष्य कुमार मायदेव महामण्डलेश्वर द्वारा पार्श्वनाथ मूर्तिको स्थापनाका उल्लेख है । इन लेखोंका समय निश्चित नहीं है । ] [ रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० १४९, १५०, १५२, १५४ ] ५८५ भोसे ( सातारा, महाराष्ट्र ) कराड [ ५८१ बेलगामे (मैसूर) संस्कृत-कन्नड [ इस लेख में मूलसंघ - काणूरगणके वामनन्दि व्रतोश्वरका उल्लेख है । लेख बहुत घिस गया है । समय निश्चित नहीं ] [ रि० इ० ए० १९४६-४७ क्र० २४३ ] ५८६ १ गणप्राच्य महीभृदकी श्री२ भव्याधिवर्धिष्णुशशांक मूर्तिः 斑
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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