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________________ -५२.] करन्दै आदिके देख २ रुक्कुं नीलगिरि हेलाचार्यपादपूजै आदिवारन् तोरुम् मेरि आळयत्तिन् श्रीपाश्र्वनाथस्वामियुं ज्वालामा (लि) निमम्मणयु मेडि स्वर्णपुरजैनगल एडुत्तुकोण्ड पोय पूजिप्पदु (1) इन्द शासनमनन्तसेनदेव (नाले ) लुइपटदु (1) [ए० ई० २९ पृ० २०२] ५१६ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास) शक १६६९ = सन् १७४८, तमिल [ यह लेख ज्येष्ठ शु० ५, शुक्रवार, शक १६६९ को लिखा गया था। मुनिगिरि स्थित कुन्थुनाथस्वामीके मन्दिरके गोपुरका जीर्णोद्धार अगस्तियप्प नायिनार्ने किया ऐसा इसमें कहा गया है। [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० १३६ ] ५२० मूडबिदुरे ( मैसूर ) शक १७६ = सन् १७५७, कन्नड [विद्यानगर ( विजयनगर ) के राजा विजय सदाशिव महारायके अधीन सोदे प्रदेशके शासक अरसप्पोडेयके पुत्र इम्मडि अरसप्पोडेयने वेण्णेगावे ग्रामकी कुछ ज़मीन अपने गुरु चारुकीति पण्डितदेवको अर्पित की ऐसा इस ताम्रपत्रमे उल्लेख है । तिथि-मार्गशिर शु. १ शक १६७९, राक्षस संवत्सर । [रि. सा. ए. १९४०-४१ पृ. २४ क्र. ए ६ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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