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________________ ३१६ जैनशिलालेख-संग्रह [५१६ बेल्लूर ( मैसूर) कन्नड (सन् १६८०) [ यह लेख विमलनाथमूर्तिके पादपीठपर है। पद्मकुलके शर्कर-द्वारा इस मूर्तिकी स्थापना हुई थी। यह हुलिकल निवासी था तथा समन्तभद्राचार्य के शिष्य लक्ष्मीसेनाचार्यका शिष्य था। समय लगभग सन् १६८० का है।] [ए० रि० मै० १९१५ पृ० ६८ ] ५१७-५१८ पोन्नूर ( उ० अर्काट, मद्रास) शक १६५५ = सन् १७३३, तमिल [ स्थानीय जिनमन्दिरके छतमें लगे स्तम्भपर यह लेख है । तिथि बंगाशि २७, प्रमादी संवत्सर, शक १६५५, कलिवर्ष ४८३४ यह है । इसमें कहा है कि स्वर्णपुर-कनकगिरिके जैन हेलाचार्यकी साप्ताहिक पूजाके लिए प्रति रविवारको पार्श्वनाथ तथा ज्वालामालिनीको मतियाँ नोलगिरिपर्वतपर ले जाते हैं। यहींके अन्य लेखमें पार्श्वनाथको स्तुतिमें कुछ मन्त्र लिखे हैं। [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ४१६-१८ पृ०४० ] मूललेख १ स्वस्ति श्री शालिवाहनशकाब्दः १६५५ कल्यब्दः ४८३४ का मेळ चेल्ला निण्रा प्रभवादि ग (श ) काब्दः वरुष ४६ क्कु प्रमादिच वरुषं बैगाशिमादं १० (उ) एलुदिय शासनमावदु (1) स्वस्ति श्रीस्व (ण) पु (र) कनकगिरि आदीश्वरस्वामिचेस्यालय सम्बन्दमान वायुमूलैयिलि
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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