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________________ ३१४ जैनशिलालेख संग्रह [५१५ ५१५ ,बेल्लूर ( मैसूर) शक १६०२ = सन् १६८०, कन्नड १ ॥शुभमस्तु॥ नमस्तुंगशिरश्चुम्बिचंद्रचामर२ चारवे । त्रैलोक्यनगरारम्भमूलस्तं माय शम्भ३ वे ॥ स्वस्ति श्रीजयाभ्युदय शालिवाहनशकवरुषंग४ लु १६०२ ने खुद्धि सं । भाद्रपद ब १० ब्लु दिल्लिकोल्डा पुरजि५ नकंचिपेनुगोंडेसिंहासनद समंतमद्रस्वामिगल शि. ६ व्यराद वीरसेनभट्टारकरवर प्रियशिष्यराद लक्ष्मीसेनम७ धारकरवरिगे प्रात्रेयगावद भापस्तंभसूत्रद य८ जुःशारवायायिगलाद श्रीमन्महाराजश्रीहरति सम्मेटरंगहै पराजरवर पौत्रराद कृष्णप्पराजरवर पुत्रराद राय १० प्पराजरवरु रत्नगिरिबस्ति देवस्थानदल्लि यी जिनेश्वर स्वामिप्रतिष्ठा११ कालदल्लि दारागृहीतवागि कोह भूदानद दर्मशासनदान१२ पट्टे क्रम तेंदरे ( पंकि ३ से १२ तकका पाठ पंक्ति २६ तक दो बार दोहराया है।) २७ क्रम वैतेंदरे यी रत्नगिरि स्थलदल्लि अनादियागियिथाब२८ स्ति देवस्थानदल्लि जिनेश्वरस्वामिगे आराधने नडेयदे यिद
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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