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________________ -५०४ ] मूडविदुरेका लेख एक दूसरोंसे पत्थर, लाठी आदिसे लड़ते थे। सेनमणके समन्तभद्रदेवने उन्हें इस कार्यसे रोककर दीपाराधना और अन्य पूजाओंसे यह त्यौहार मनानेका आदेश दिया। तदनुसार देवण्ण तथा अन्य शिष्योंके प्रभावसे उसका पालन भी कराया। तिथि-दीपावली, आंगिरस संवत्सर, शक १५५४1] [रि० सा० ए० १९४०-४१ ऋ० ए० ४ पृ० २३ ] ५०८ मूडबिदरे ( मैसूर) शक १५६२ =सन् १६४१, कन्नड [ इस ताम्रपत्र-लेखकी तिथि शक १५६२ विक्रम, मार्गशिर कृ० २ शक्रवार, ऐसी है। मंगलर तथा बारकरके शासक केलडि वीरभद्र नायकके समयका यह लेख है। पुत्तिगे निवासी चौटवंशके चिक्कराय ओडेयद्वारा अभिनव चारुकोति पण्डितदेव तथा मडबिद्रेके अन्य श्रेष्ठियोंको संरक्षणका आश्वासन दिये जानेका इसमें निर्देश है। इसके पूर्व अधिकारियोंद्वारा धार्मिक तथा वैयक्तिक सम्पत्तिका अपहरण किया गया था अतः यह आश्वासन ज़रूरी हुआ था । ] [रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र० ए ८ ] ५०६.५१० शिवपुरी ( मध्यप्रदेश) संवत् १७०३=सन् १६४७, हिन्दी-नागरी [ इस लेखमें महाराज संग्रामके पोतदार जैन मोहनदास-द्वारा कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है। यहींके एक अन्य लेखमें गंगादास और गिरधर
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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