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________________ -५०४ ] करन्दै आदिके लेख [ इस लेखमें देशिगणके प्रमुख संगीतपुरके पट्टाचार्य अकलंकदेवके स्वर्गवासका निर्देश है जो कार्तिक शु० १० शक १५३० के दिन हुआ था । उनकी यह निषिधि उनके शिष्य भट्टाकलंकदेव द्वारा स्थापित की गयी थी। ] [ ए० ई० २८० २९२ ] ५०३ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) शक १५४१ सन् १६१९ [ यह लेख विजयनगरके महामण्डलेश्वर रामदेव महारायके समय शक १५४१, कालयुक्ति, चैत्र ३ के दिन लिखा गया था। वाल नागम नायक और तलत्तार लोगों द्वारा कयिलायप्पुलवर् ( नामक जैन विद्वान् ) को कुछ भूमि दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है । ] [रि० स० ए० १९३९-४० क्र० १३७ ] ५०४ ३३६ मूडबिदुरे (मैसूर) शक १५४४ = सन् १६२२, कन्नड [ इस ताम्रपत्र निर्देश है कि सेनगणके समन्तभद्रदेवने इक्केरिमें hofs वेंकटप्प नायकसे मिलकर तथा उसके अधीन अधिकारी चिन्नभंडार देवपसे साहाय्य पाकर बिदुरे नगरकी त्रिभुवनतिलक बसतिका जीर्णोद्धार कराया । तिथि - वैशाख, शक १५४४, रुधिरोद्गारी संवत्सर । ] [रि० स० ए० १९४०-४१ पृ० २४ क्र० ए४ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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