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________________ ३३८ जैनशिलालेख-संग्रह [-५०१ सुप्रसिद्ध विद्वान् थे। लेख १६वीं सदीकी लिपिमें है तथा चन्द्रनाथमन्दिरके मुख्य द्वारके पास खुदा है । मन्दिरके मण्डपकी दीवालपर खुदे एक अन्य लेखमें इन्हीं आचार्यको वीरसंघप्रतिष्ठाचार्य यह विशेषण दिया है। [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र०, ३०२ पृ० ६५ ] ५०२ सोदा ( उत्तर कनडा, मैसूर) शक १५३० =सन् १६०७, कार पहली भोर १ श्री (1) स्वस्ति (1) श्रीजयाभ्युदय शालिवाह२ नशकवरुष १५३. नेय प्लवंगसंवत्सर३ द कार्तिक शु १० बुधवारदलि श्रीमद् राय दूसरी ओर ४ (राजगुरुम) डलाचार्य महावाद५ (वादीश्वर रा) यवादिपितामह सकलविद्वज६ (नचक्रवर्ति ब) लालरायजीवरक्षापा तोसरी ओर ७ लक देशिगणाग्रगण्य संगीतपुरसिंहा (सन)८ पट्टाचार्य श्रीमदकलंकदेवरुगलु ९ श्रीपंचगुरुचरणस्मरणियिंद स्वर्गस्थरा चौथी ओर १० (दरु) (1) अवर निषिधिमंटपके मंगल महाश्री (1) ११ भट्टाकलंकदेवेन स्याद्वादन्यायवादिना(0) निषि१२ धीमंटपो हब्धः स्थेयादाचंद्रमा (स्क) र (३)
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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