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________________ -५०१ ] हुम आदिके लेख = हुमच ( मंसूर ) १६वीं सदी, कन्नड १ श्री बोम्मरसनु रूपवतिदिदन् [ यह लेख पार्श्वनाथबसदिमे स्थित क्षेत्रपालमूर्तिके पादपीठपर १६वीं सदीकी लिपि है । इसमें मूर्तिके निर्माताका नाम बोम्मरस दिया है । ] [ ए०रि० मैं ० १९३४ पृ० १७७ ] ४६६ सेतु ( शिमोगा, मैसूर ) १६वीं सदी, कन्नड ३३७' १ स्वस्ति श्रीगुम्मै सेट्टियर बस्तिय श्रीवर्धमानस्वामिय संनिधानदल्लि गणपणसे हियर मग संघय्यसेवियरु तमगे पुण्यात - वागि प्रतिष्ठे माडिसिद अभिनन्दनतीर्थेश्वरनिगे मं २ गल महा श्री श्री श्री श्री श्री [ इस लेख में संघय्य सेट्टि द्वारा अभिनन्दन तीर्थंकरकी इस प्रतिमा की स्थापनाका निर्देश है । इस समय गुम्मैयसेट्टिकी बसतिके वर्धमानस्वामी उपस्थित थे । लिपि १६वीं सदीकी प्रतीत होती है । ] [ ए० रि० मं० १९४४ पृ० १६६ ] ५००-५०१ तिरुनिडंकोण्डै ( मद्रास ) १६वीं सदी, तमिल [ इस लेखमे एक पद्यमें कोण्डमले निवासी गुणबद्दिरमुनिवन् ( गुणभद्रमुनि ) की प्रशंसा की गयी हैं जो दक्षिणप्रदेशमें तमिल और संस्कृतके २२
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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