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________________ जैनशिलालेख संग्रह [५९३ ४६२-४६३ रायबाग ( मैसूर ) शक १५१९ = सन् १५९७, संस्कृत-कन्नड [ ये दो लेख स्थानीय आदिनाथमन्दिरके दो स्तम्भोंपर हैं - एक कन्नडमे है तथा दूसरा उसीका संस्कृत रूपान्तर है। इसमें ज्येष्ठ २० १४, शक १५१९ के दिन मूलसंघ-सेनगणके सोमसेन भट्टारक-द्वारा इस मन्दिरके जीर्णोद्धारका तथा पार्श्वनाथमूर्तिकी स्थापनाका उल्लेख है।] [रि० इ० १० १९५५-५६ क्र० १५२-५३ पृ० ३३ ] ४६४-४६५ मारूरु ( दक्षिण कनडा, मैसूर ) शक १५२० = सन् १५६८, कन्नड [ये दो लेख है। मारूरुके पार्श्वनाथबसतिमे स्थित तीर्थकरमूर्तियोंकी पूजाके लिए पार्श्वदेवा बिन्नाणि-द्वारा कुछ भूमि दान दिये जानेका इनमें उल्लेख है। पहला लेख चैत्र शु० ३, सोमवार, शक १५२० का है तथा दूसरा लेख पौष शु० २ शुक्रवार, शक १५२० का है। [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० ७४-७५ ] ४९६-४६७ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) संस्कृत-ग्रन्थ, १६वीं सदी [ यह लेख १६वीं सदीको लिपिमे है। पुष्पसेन योगीन्द्र के गुरु समन्तभद्रकी अक्षय कीतिका इसमे वर्णन है। यहीके एक अन्य लेखमें मुनिभद्रस्वामीका नामोल्लेख किया है। ] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र० १३४, १४५ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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