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________________ -१९] बोलिगि प्रादिके लेख ३३५ ४६० रलत्रयबसदि बोलिगि, ( उत्तर कनडा, मैसूर ) १६वीं सदी (सन् १५८७ ) [ इस लेखमें मूलसंघ-देसिगण-पुस्तकगच्छके श्रवणबेलगुल मठके चारुकीर्ति पण्डितका उल्लेख किया है। इन्हें रायराजगुरु, मण्डलाचार्य, बल्लालरायजीवरक्षापालक आदि उपाधियाँ प्राप्त हों। इनको परम्परामे श्रुतकीर्ति पण्डित हुए। इनको शिष्यपरम्परा इस प्रकार थो-श्रुतकीर्ति-विजयकोतिश्रुतकोति (द्वितीय)- विजयकोति (द्वितीय,) अकलंक - विजयकोति ( तृतीय )- अकलक ( द्वितीय ) - भट्टाकलंक । भट्टाकलंकदेवका समय शक १५१० = सन् १५८७ दिया है। संगीतपुरका लोकप्रयुक्त नाम हाडुवल्लि है। यहाँके राजा इन्द्रभूपालको विजयकीर्ति (प्रथम ) को कृपासे सिंहासन प्राप्त हुआ ऐसा कहा गया है। विजयकीर्ति (द्वितीय) को प्रेरणासे पश्चिम समुद्र तटपर भट्टकल नगरको स्थापना हुई थी। [ए० इं० २८ पृ० २९२] ४६१ जि० दक्षिण कनडा ( स्थान नाम अज्ञात ) शक १५१३ -सन् १५६१, कन्नड [ यह ताम्रपत्र शक १५१३ खर संवत्सरमे किन्निग भूपालने दिया था। इसमे एक जैन मन्दिरके लिए कुछ भूमिदानका उल्लेख है।] ( इ० म० दक्षिण कनडा २)
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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