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________________ ३३४ जैनशिलालेख-संग्रह [१८९६ यवडेर मकलु । विक्कवीरप्पवाडेर मक्कलु चेन्नविरवा७ डेरु । गेरसोप्पे समंतभद्रदेवर शिष्यरु । गुणमद्रदेव८ र सिप्यरु । वीरसेनदेवरिंगे। कोट भूमि क्रयपत्रद क्रम९ वेंतेंदरे नालपुरद प्रामदोलगे संकण्णन मग मल१० यन डोंकिन कोडिगे बिजवरि ख १० हत्तु खण्डुग भूमि ११ यु । सलविटु नम्म प्रारमनिगे हरवरियागि भंद सं१२ मंद । यी वीरसेनदेवरिगे यक्के कोटेवागि। आ भूमिगे सलु१३ व क्रय द्रव्य । लक्षणलक्षित । तत्कालोचितमध्यस्तपरिकल्पित १४ उमयवादिसंप्रतिपन्न कालपरिवर्तनक्के सलुव प्रियसा१५ हे । निजगटि वरह ग ४० अक्षरदलु नाल्वत्त वरहनु । तर १६ विस उलियदे साकल्यवागि । सलिसि कोण्डेवागि आ भूमिगे सलु१७ व चतुसिमेय विवर। मुडलु यिगद्देय नीरस्कलगलिं१८ द पडुवलु । बडगलु केरेयेरियिं दं तकलु तेंकलू नं१६ म गद्देयिदं बडगलु। यिती चतुरसीमेयोलगुल नि२० धि निक्षेप जल पासण अक्षाणि आगमि सिध सांध्यंग२१ लेब आष्टभोग तेजसाम्यवंनु निउनिम्म शि२२ प्यरु पारम्परियवागि सुखदि बोगिसि बहिरि २३ यंदु बरमि कोट क्रयशासनपटे । यिदक्के अबिला(षे) बटवरु दे२४ वलोक मत्यलोक विरहितरु श्रीहत्य गोहत्यक बजनरह२५ रु। चेन्नवीरवडेरु श्री श्री श्री श्री श्री [ यह लेख वैशाख शु० ५, रविवार, शक १५०९ सर्वजित संवत्मर इस तिथिका है। दानिवामके शासक चेन्नवीरप्प बडेर-द्वारा गैरसोप्पेके बीरसेनदेवको कुछ भूमि दी जानेका इसमे उल्लेख है। नालपुर ग्रामकी यह भूमि ४० वराह क़ीमत देकर खरीदी गयी थी।] [ए. रि० मै० १९३१ पृ० ११० ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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