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________________ -४८९] चिकहनसोगेका लेख ३३३ [यह लेख चैत्र २०७, रविवार, शक १५०७, पार्थिव संवत्सरके दिन लिखा है। इसमें दानिवासके शासक चेन्नवीरप्प वोडेयर-द्वारा गेरसोप्पेके वीरसेनदेवको कुछ भूमि दी जानेका उल्लेख है। इस भूमिके लिए ३० वराह कीमत दी गयी थी। यह पहले बालेपाल तम्मयके पुत्र नरसप्पकी थी जो पुत्ररहित स्थितिमे मृत्यु होनेसे राजाधीन हुई थी। भूमि योचलदाल ग्रामके क्षेत्रमें थी।] [९० रि० मै० १९३१ पृ० १०८ ] ४८८ विकहनसोगे ( मैसूर) सन् १५८५, कराड [ यह लेख आदिनाथवसदिके गोमुखपर है। चारुकीर्ति पण्डितदेवके शिष्य तथा ब्राह्मणप्रमुख चिक्कणय्यके पुत्र पण्डितय्य द्वारा आदीश्वर, चन्द्रनाथ तथा शान्तीश्वरको मूर्तियोंको स्थापनाका इसमे उल्लेख है। समय सन् १५८५ है।] [ए० रि० मै० १९१३ पृ० ५१] ४८६ येडेहल्लि ( मैसूर) शक १५०९= सन् १५८७, कन्नड १ सुभमस्तु । नमस्तुंगशिरश्चुंबिचंद्रचामर२ चारवे त्रैलोक्यनगरारंभमू(ल)स्तंमाय शंभवे । ३ स्वस्ति श्रीजयाभ्युदय शालिवाहन शक वरुष १५०६ ४ नेय संद वर्तमान । सर्वजित्तु सं । वयिशाक शु ५ मि ५ यु आदिवारदलु श्रीमत्त । दानिवासद चेन्नरा
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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