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________________ ३१० जैनशिलालेख संग्रह [ ४४७ पंचमि आदिवारदल अदियर् बलिय गण्डलिकेय उटेकोंड रामनायकनु बिदिरुरल्लि तनगे स्वर्गापवर्गसुखक्के का २ (२) वागि चैत्यालय व कट्टिसि आदीश्वरन प्रतिष्ठेयन माडिसिदनु श्री [ इस लेख मे रामनायक द्वारा बिदिरूर ग्राममें चैत्यालय बनवानेका तथा आदिनाथकी इस मूर्तिकी स्थापना करवानेका वर्णन है । यह कार्य ज्येष्ठ शु० ५, शक १४१० के दिन सम्पन्न हुआ था । ] [ ए०रि० मं० १९४३ पू० ११३ ] ४४७ जबलपुर ( मध्यप्रदेश ) संवत् १५४३ = सन् १४६३, संस्कृत-नागरी [ यह लेख पार्श्वनाथकी भग्न मूर्तिके पादपीठपर है । तिथि वैशाख शु० ३, संवत् १५४९ ऐसो दी हैं । ] [रि० इ० ए० १९५१-५२ क्र० १२३ पृ० २१ ] ४४८ शिवडूंगर ( राजस्थान ) सं० ० १५५६ = सन् १५००, संस्कृत नागरी [ यह लेख मूलसंघ-बलात्कारगण - सरस्वतीगच्छके आचार्य रत्नकीर्तिके समय सं० १५५६ में लिखा गया था। इनकी गुरुपरम्परा पद्मनन्दि-शुभचन्द्रजिनचन्द्र रत्नकीर्ति इस प्रकार बतलायी है । ] [रि० आ० स० १९०९-१० पृ० १३२ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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