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________________ वितलबुग बादिके लेखा ३०१ ४४३-४४४ चितलगुग ( मैसूर) १५ों सदी ( सन् १४७२), कार १ नंदन सं २ बाचण्णगल ३ निस्तिगे [ यह निसिषिलेख वाचण्णके समाधिमरणका स्मारक है। १५वों सदीकी लिपिमें नन्दन संवत्सरका उल्लेख है अतः सन् १४७२ का यह लेख होगा। यहींका एक अन्य लेख इसी समयकी लिपिमें है जिसमें गुम्मटदेवकी निसिधिका उल्लेख है । यथा १ सखबर- २ भासामु ३ (गु) मटदेव इसमें तिथिके अंक लुप्त हो चुके हैं । ] [ए. रि० मै० १९३९ पृ० १०४-५ ] गुरुवयनकेरे (द० कनडा, मसूर ) शक १५०६=सन् १९८४, काड [ इस लेखमें शक १४०६ मे नरसिंह बंग-द्वारा कन्नडिबसदि नामक जिनमन्दिरको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है। ] [रि० सा० ए० १९२८-२९ क्र० ४८१ पृ० ४५ ] बिदिकर (शिमोगा, मैसूर ) शक १४१०=सन् १९८८, कपड , स्वस्ति स (क) परिष १० नेप प्लवंग संघरद जेष्ट सुर
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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