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________________ ३०० जैनशिलालेख संग्रह [ ४२१ ४२३-४२४ भटकल ( उत्तर कनडा, मैसूर ) शक १३३२ = सन् १४१०, कड [ ये दो लेख हैं । कार्तिक शु० १०, सोमबार, शक १३३२ सर्वधारी संवत्सर, यह इनकी तिथि है । एकमे संगिराव ओडेय द्वारा उनके किसी सम्बन्धित मल्लिराय नामक व्यक्तिके समाधिमरणपर निसिधिकी स्थापनाका उल्लेख है । दूसरेमें किसी राजकन्या के समाधिमरणपर निसिधिस्थापनाका उल्लेख है । इसमें हैवभूप, भैरादेवी तथा संगिरायका भी नामोल्लेख है । ] [ रि० इ० ए० १९४५-४६ क्र० ३३९-४० ] ४२५ लक्ष्मेश्वर (मैसूर) शक १३३४ = सन् १४१२, कमड [ यह लेख विजयनगरके देवराय महारायके समय मार्गशिर शु० २, रविवार, नन्दन संवत्सर शक १९३३४ को लिखा गया था। शंख बर्सात के आचार्य हेमदेव तथा सौम्यदेव ( शिवमन्दिर ) के शिवरामय्य-द्वारा दोनों मन्दिरोंकी भूमिकी सीमाके बारेमे कुछ विवादका समझौता किये जानेका इसमें उल्लेख है । यह कार्य नागण्ण दण्डनायक द्वारा सम्पन्न हुआ था । ] [रि० स० ए० १९३५-३६ क्र० ई० ३३ पृ० १६३ ] ४२६-४३० टोंक ( राजस्थान ) संवत् १४७० = सन् १४१३, संस्कृत - नागरी [ ये ५ मूर्तिलेख है । मूलसंघके आचार्य प्रभाचन्द्रके शिष्य पद्मनन्दि उपदेश से खण्डिलवाल कुलके कुछ व्यक्तियों द्वारा ज्येष्ठ शु० ११, गुरुवार, संवत् १४७० को ये मूर्तियां स्थापित की गयी थीं । ] [ रि० इ० ए० १९५४-५५ क्र० ४६६-७० पृ० ६९ ] -
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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