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________________ २९१ तवनन्दी आदिके लेख २९॥ ५ "सिंगलवेन्तिर्दडे नाक... ६ ""युविक... ७ .''वाधि [ यह निसिधिलेख बहुत खण्डित है। सोरब और तवनिधिके शासक ब्रह्मके समय किसी व्यक्तिके समाधिमरणका यह स्मारक है। मृत व्यक्ति कोई महिला थी क्योंकि लेखके पाषाणपर एक स्त्रीमूर्ति उत्कीर्ण है।] [ए० रि० मै० १९४२ पृ० १७९ ] ४०८ तवनन्दी ( मैसूर) १४वीं सदी, कसद : जिनहं जिनमुनिगलु मत्तनु- २ पम प्राणीश हरियन३ दन नेनदुं वनजाक्षि महा- ४ लक्ष्मयु धनतर शौर्य५ दोलुमनियोल स ६ ले पायिदल ७ महालक्ष्मिय सद्गुण- 5 समुद्रोपमान ॥ मंहै गलमहा श्री श्री [ इस लेखमे महालक्ष्मी नामक किसी महिलाके अग्निप्रवेश-द्वारा मरणका उल्लेख है । जिन, मुनि और अपने पति हरियनंदनका स्मरण करते हुए उसने धैर्यपूर्वक प्राणत्याग किया था। लिपि १४वी सदीकी है।] ए. रि० में० १९४२ पृ० १८५ ] ४०६ तलकाड ( मैसूर) १४वीं सदी, कलह [ यह लेख द्रविल संघ-नन्दिगणके कमलदेवके शिष्य लोकाचार्यके समाधिमरणका स्मारक है। लिपि १४वीं सदीकी है। यह लेख वैकुण्ठनारायणमन्दिरकी दीवालमें लगा है। [ए० रि० मै० १९१२ पृ० ६३ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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