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________________ २२६ जैनशिलालेख-संग्रह [२९५२६५ कोनकोण्डल ( अनन्तपुर, आन्ध्र ) कन्नड, १२वीं सदी [ यह लेख रसासिद्धलगुट्ट नामक पहाड़ोपर एक पाषाणपर खुदा है। इसमे गुम्मिसेटिके पुत्र ब्रमदेवका उल्लेख किया है। लिपि १२वीं सदीकी है।] [रि० सा० ए० १९४०-४१ क्र० ४५७ पृ० १२६ ] २६६ हूलि (जि० बेलगाँव, मैसूर ) कन्नड, १२वीं सदो [ इस लेखको लिपि १२वीं सदीको है। नेमिचन्द्र सिद्धान्त-चक्रवर्तीके शिष्य नविलरुके गोवरिय कलिगावुण्ड, तावरे महादेविशट्टि आदिके द्वारा इस दरवाजेके बनवाये जानेका इसमे उल्लेख है । ] [रि० सा० ए० १९४०-४१ ई क्र० २४ पृ० २४२ ] २६७ गोरूर ( हासन, मैसूर ) कन्नड, १२वीं सदी [ इस लेखमे मलवसेट्टि, कटकद बम्मिसेट्टि तथा केसिसेट्टि इन तीन व्यक्तियों द्वारा गोरवूर ग्रामकी बसदिके लिए पांच खंडुग भूमि दान दिये जानेका वर्णन है । मल्लियका नामक स्त्रीको भी प्रशंसा की है। लेखकी लिपि १२वीं सदीकी है। इसका बहुत-सा भाग घिसनेसे नष्ट हो गया है।] ( मूल लेख कन्नड लिपिमे मुद्रित ) [ए० रि० मै० १९४३ पृ० ७४ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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