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________________ -२९४ ] माविनकेरेका लेख - ૨૨૫ २२५ २६२ माविनकेरे ( कडूर, मैसूर ) संस्कृत-कमड, १२वीं सड़ी १ श्रीमूलसंघपनसोगवतीप्रसिद्धदेशीयविदितपु२ स्तकचारुगच्छे । यः कुण्डकुंदमुनिवं. ३ शललामभूलललितकीर्तिमहा४ मुनींद्रः । तरपादयुगलांमोजशेखरी५ भूतमस्तकः जिनदत्तान्वयः स्वामी योभूत... ६ नन्दनः ॥ स्वस्तिश्रीशकवत्सरे... ७ पृथ्वीपतिः सो ८ यं श्रीकलशाहै ख्यचारुनगरे श्रीचं. १० द्रनाथप्रमो(:)प्रि(प्री)११ त्या साधयदुत्स १२ वेन महता बिंब१३ प्रतिष्ठापितं ॥ श्री १४ श्रीदेवचं१५ द्रदेवरु गे १६ यि ओदु [ यह लेख स्थानीय बसदिके चन्द्रनाथमूर्तिके समीप है । मूलसंघदेशीयगण-पनसोगा शाखाके ललितकीर्ति मुनिके शिष्य देवचन्द्र-द्वारा यह मति स्थापित की गयी थी। जिनदत्तके वंशके किसी राजाका इसमे उल्लेख है । शकवर्षके अंक लुप्त हुए है । लिपि १२वी सदीकी है। ] [ए. रि० मै० १९४६ पृ० ३६ ] २६३-२६४ निट्टर ( मैसूर ) कनड, १२वीं सदी [ यह लेख शान्तोश्वरबसदिके द्वारपर है। मालवेके पुत्र मलेय-द्वारा यहाँके मतियोंके निर्माणका इसमें उल्लेख है। लिपि १२वीं सदीकी है। यहाँके एक अन्य लेखमें शिवनहसेट्टिकी निषिधिका उल्लेख है । ] [ए. रि० मै० १९१९ पृ० ५१]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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