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________________ जैनशिलालेख-संग्रह [२४७-- २४७ बल्गेरि ( बेलगाँव, मैसूर) शक १०७८ = सन् ११५६, कन्नड [ इस लेखमें चालुक्य सम्राट् त्रैलोक्यमल्लके राज्यकालमे कलचुरि वंशके बिज्जल ( द्वितीय ) तकके सामन्तोंकी वंशावली दी है। बिज्जलके बन्धु मलुगि तथा उसकी पत्नी लक्ष्मादेवीका शासन बेलवल ३०० प्रदेशपर चल रहा था उस समय राजाके मन्त्री कालिदास चमूपने पार्श्वनाथतीर्थको यात्रा कर एक मन्दिर बनवाया तथा उसके लिए कुछ दान दिया। इसकी तिथि पुष्य शु० (१२), धातु संवन्सर, शक, १०७८, उत्तरायणसंक्रान्ति ऐसी दी है । ] [ रि० इ० ए० १९५३-५४ ऋ० १७५ पृ० ३५ ] २४८ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) सन् ११५६, तमिल [यह लेख चोल सम्राट राजराजदेवके १०वे वर्षमे लिखा गया था। इस मन्दिरमे सन्ध्यासमय दीप प्रज्वलित रखनेके लिए मन्दिर-अधिकारीद्वारा ३०० काशु स्वीकार किये जानेका इसमे निर्देश है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० क्र ० १४१ ] २४६-२५० करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास ) सन् १९५६-५७. तमिल [ इस लेखमे जयंगोण्डशोलमण्डलम् प्रदेशके ऊरुक्काडु ग्रामके एक वेल्लाल-द्वारा करन्दस्थित जिनमन्दिरमें दीप प्रज्वलित रखनेके लिए कुछ
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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