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________________ १७७ -२४६] बेलूरका लेख २६ लद होरेयणि मागवागि बन्द हेब्बट्टे । तेकल जालदहल्ल वल्लि हडवलु केंदलिरहल्ल । नैऋत्यदल हुलियक२७ रलाल हडवलु हुलियहल्ल । वायव्यदलु सूलद हिरियकणि । बडगल मागेडेगे होह हेदारियब२८ डगण मोरडि । ईशान्यदोल कोडेयालवल्लि तेंकलु नदृ कल्लु । ___इंता चतुःसीम वेरसु नागरहालं बल्लजिना (ल)य२९ क्के सर्वनमम्यवागि पडिसलिसुववर्गे गंगेय तडियल सायिर कविलेयं कोडं कोलगुमं होनल कट्टिसि चतु३० ...'गुत्तरायणसंक्रमणग्रहणव्यतीपातदंदु दानं माडिद फलवी धर्ममं कि३१ .."यला कविलेयुमना ब्राह्मणरुमना तिथिवारदलु३२ ""ममं प्रतिपालिसुवुदु ॥ स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरत.. ३३ ... जायते क्रिमिः ॥ मंगल महा श्री श्री पालित ३४ .."जालोलं विशदयशोलीलं गुणसेनपंडितं बुधनि... ३५ ..पुरंदरं गुणसेनपंडित.... [ यह लेख केशवमन्दिरके छतमे लगा पाया गया। इसमे पहले वर्धमानस्वामी ( महावीर ) से प्रारम्भ कर कई आचार्योकी परम्परामे श्रीपाल विद्यदेवका वर्णन किया है। इनके द्वारा निर्मित आदिदेवकी बसदिके लिए होयसल राजा नरसिंहके सेनापति माचियणने नागरहाल ग्राम दान दिया था। दानकी तिथि शक १०७६ की उत्तरायणसंक्रान्ति थी । लेखमे श्रीपाल विद्यके गुरुबन्धु अनन्तवीर्य तथा शिष्य वासुपूज्य एवं वादिराजका भी वर्णन है । अन्तम गुणसेन पण्डितका भी उल्लेख है।। [ए० रि० मै० १९३८ पृ० १०२ ]
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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