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________________ जैनशिलालेख-संग्रह [२३४भरतिमय्य-द्वारा शान्तीश्वरबसदिके लिए मोदलियहल्लि ग्रामके दानका उल्लेख है। यह दान क्रोधनसंवत्सरका है। तदनुसार सन् ११४५ का यह लेख है। ये दण्डनायक आचार्य गण्डविमुक्तदेवके शिष्य थे। 1 [ए० रि० मै० १९१५ पृ० ५१ ] २३४ बालेहल्लि ( धारवाड, मैसूर ) राज्यवर्ष ८ = सन् ११४५, कन्नड [ यह लेख चालुक्य सम्राट् जगदेकमल्लदेवके राज्यवर्ष ८, क्रोधन संवत्सरमें फाल्गुन शु० १, रविवारके दिन उत्कीर्ण किया गया था। बम्मिसेट्टिने बालेयहल्लिमे पार्श्वनाथमन्दिरका निर्माण किया तथा उसकी रक्षाके लिए देसिगण, पुस्तकगच्छ, ( कोण्डकुन्द ) अन्वयके मलधारिदेवको कुछ दान दिया ऐसा इसमे उल्लेख है । मन्दिरको दिये गये कुछ अन्य दानोका भी इसमे उल्लेख है।] [रि० इ० ए० १९४७-४८ क्र० १७६ पृ० २२] २३५ नाडलाई ( जि० देसूरी, राजस्थान ) संवत् १२०२ = सन् ११४६, संस्कृत-नागरी १ ओं ॥ संवत् १२०२ श्रासोज वदि ५ शुक्रे श्रीमहाराजाधिराज श्रीरायपालदेवराज्ये प्रवतं(माने) २ श्रीनदूलडागिकायां रा० राजदेवठकुरेण प्रव(त)मानेन श्रीमहा वीरचैत्ये साधुत३ पोधननि (ठाधे) श्रीअभिनवपुरीय वदार्या अत्रे)पु स(म)स्त वणजारकेषु देसी मिलित्वा वृ -
SR No.010113
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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